मिर्ज़ापुर की स्वास्थ्य विभाग सुस्त , न जाने जिले में कितने अवैध दवाखाना और अस्पताल , कब चलेगा बाबा का बल्डोजर ?

मिर्ज़ापुर की स्वास्थ्य विभाग सुस्त , न जाने जिले में कितने अवैध दवाखाना और अस्पताल , कब चलेगा बाबा का बल्डोजर ?

स्वास्थ्य विभाग की अनदेखी: जब ‘बलम थानेदार’ ही चला रहा हो जिप्सी :मिर्जापुर में स्वास्थ्य विभाग की खामियां: अवैध मेडिकल स्टोर्स और क्लिनिक्स की धधकती आग

*स्वतंत्र पत्रकार चंदन दुबे*

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कैप्शन

अवैध मेडिकल स्टोर्स: फार्मासिस्ट का नाम भी नहीं/प्रतिबंध नारकोटिक दवाइयों की बिक्री:

अवैध क्लिनिक्स: बंदरों के हाथ में अंगूर

 

 

मिर्जापुर – जिले के नगर और ग्रामीण इलाकों में अवैध मेडिकल स्टोर्स और निजी अस्पतालों के तांडव देखने को मिला रहे है। क्योंकि जिले में बिना  गाइडलाइन के पालन करते हुए तमाम अवैध अस्पताल और क्लिनिक संचालित होते हैं यहाँ की स्थिति उस कहावत की तरह स्पष्ट है जहां ‘ बलम थानेदार चलावे जिप्सी’। जी जब ‘बलम’ यानी स्वास्थ्य विभाग ही नियमों की धज्जियाँ उड़ा रही हो , तो अवैध गतिविधियों और अनियमितताओं पर रोक लगाने वाला कौन होगा? क्यों की जिले के नगर और ग्रामीण इलाकों में अवैध मेडिकल स्टोर्स और निजी अस्पतालों बिना पूर्ण गाइडलाइन के चल रहे हैं । यह स्थिति वाकई ‘बंदर के हाथ में अंगूर ’ जैसी हो गई है, जहां जिम्मेदार जनता यह कहने से भी नही हिचक रहे है कि उन्होंने कहा सीएमओ और उनके अनुयायी खुद ‘बंदर’ की भूमिका निभा रहे हैं।

 

अवैध मेडिकल स्टोर्स: नियमों की धज्जियाँ उड़ा रहे लोग

मिर्जापुर में सैकड़ों मेडिकल स्टोर्स बिना लाइसेंस और बिना फार्मासिस्ट के चलाए जा रहे हैं। यह सब कुछ स्वास्थ्य विभाग की चुप्पी और अनदेखी के चलते हो रहा है। विभाग को पूरी जानकारी होने के बावजूद, केवल कागज़ी कार्रवाई होती है, जो कि एक तरह से ‘घाघ चालाकी’ ही है।

 

सच्चाई यह है कि इन मेडिकल स्टोर्स में ऐसे लोग दवा बेच रहे हैं जिनके पास दवाइयों की कोई जानकारी नहीं है। बिना किसी डॉक्टरी प्रमाण पत्र के यह लोग मरीजों की जान से खेल रहे हैं। न तो ड्रग इंस्पेक्टर कोई कार्रवाई करते हैं और न ही स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी।

 

नारकोटिक दवाइयों का अवैध व्यापार: कानून की खुली धज्जियाँ

 

नारकोटिक दवाइयों पर बैन के बावजूद, ये दवाइयाँ खुले आम बेची जा रही हैं। स्टोर्स में इन दवाइयों को छिपाकर रखा जाता है और ग्राहक के आने पर महंगे दामों पर बेचा जाता है। यह सब ‘तू डाल-डाल मैं पातरा-पातरा’ की तर्ज पर चल रहा है, जहाँ प्रशासन और विभाग दोनों ही आंखें मूंदे हुए हैं।

 

अवैध क्लिनिक्स: न कानून का खौफ, न स्वास्थ्य विभाग की फिक्र

 

ग्रामीण इलाकों में अवैध क्लिनिक्स की भी भरमार है, जो बिना किसी परमिशन और डिग्री के चलाए जा रहे हैं। इन क्लिनिक्स में मरीजों से मनमाना शुल्क लिया जाता है और इलाज के कोई प्रमाण नहीं दिए जाते। यदि गलत दवा देने से मरीज की तबियत खराब होती है, तो उन्हें बड़े अस्पताल जाने की सलाह दी जाती है। इस सबके बीच, प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की भूमिका बस ‘छोटे-छोटे हाथी’ की तरह है, जो कुछ कर नहीं पा रहे।

 

स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी: सुधार की तत्काल आवश्यकता

 

स्वास्थ्य विभाग को चाहिए कि वह कागज़ी कार्रवाई से बाहर आकर ठोस कदम उठाए और अवैध गतिविधियों पर सख्ती से पेश आए। यह समय की मांग है कि सुधारात्मक कदम उठाए जाएं ताकि जनता की स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

मिर्जापुर में अवैध मेडिकल स्टोर्स और क्लिनिक्स की बढ़ती संख्या और प्रशासन की लापरवाही यह दर्शाती है कि जब तक ठोस और प्रभावी कदम नहीं उठाए जाएंगे, तब तक स्वास्थ्य सुरक्षा की गारंटी नहीं हो सकती। अब यह देखना होगा कि प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग इस खतरनाक स्थिति को सुधारने के लिए कितनी जल्दी प्रभावी कार्रवाई करते हैं।

 

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