मिर्जापुर में सड़क हादसा ,10 लोगो की मौत , पीएम सीएम ने 2-2 लाख की सहायता की , कब रुकेगा सड़क हादसा , कौन है इनसब का जिम्मेदार

मिर्जापुर में सड़क हादसा ,10 लोगो की मौत , पीएम सीएम ने 2-2 लाख की सहायता की , कब रुकेगा सड़क हादसा , कौन है इनसब का जिम्मेदार

मजदूर यूनियन और सपा नेता पूर्व सांसद रमेश बिंद ने दिखाई दरियादिली

 

 

स्वतंत्र पत्रकार चंदन दुबे

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उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में पिछले सप्ताह में हुई तीन भीषण घटनाएं आम जनता को झकझोर देने वाली हैं। ये घटनाएं सूबे के मुखिया के सख्त सड़क एहतियात आदेश के बाद भी 2024 में पूर्वांचल का सबसे बड़ा हादसा हुआ । प्रशासनिक तंत्र की लापरवाही की खुली पोल का खामियाजा हैं की स्पष्ट रूप से दिख रहा है , जिसकी सजा बेगुनाह जनता को भुगतनी पड़ रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों की नियुक्तियां जनता की भलाई के लिए की हैं, ताकि आम लोग अपनी जिंदगी सुरक्षित और बेहतर ढंग से जी सकें। लेकिन, बेसुध अधिकारियों की लापरवाही के चलते आम जनता को अपनी जिंदगी गवानी पड़ रही है।

बीते सप्ताह करीब 12 बजे 3 तारीख गुरुवार रात एक ऐसा दर्दनाक सड़क हादसा हुआ, जिसने यूपी में एक बार फिर से सड़कों पर दौड़ते अवैध ट्रकों और लापरवाह प्रशासन की वास्तविक असलियत की सच्चाई बेगुनाहों की बलि चढ़ाने के बाद भी सायद ही दिखे। 30सितंबर से अब तक मिर्जापुर में तीन सड़क हादसों के बाद भी प्रशासन नहीं चेती ।

 

बता दें कि 3 अक्टूबर 2024 के पूर्वांचल की यह सबसे बड़ा हादसा है जो रात करीब बारह—एक बजे,रात जब अधिकतर लोग चैन की नींद में सो रहे थे, तब 13 मजदूर काम करके अपने घर ट्रैक्टर से सवार होके यह लोग जो जनपद भदोही से छत ढलाई का काम कर के अपने घर मिर्जामुराद वाराणसी जा रहे थे। थाना कछावा मिर्जामुराद लौट रहे थे। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था। तेज रफ्तार ट्रक ने पीछे से उनके ट्रैक्टर-ट्रॉली में जोरदार टक्कर मार दी, जिससे 10 लोग मौके पर ही अपनी जान गंवा बैठे और 3 गंभीर रूप से घायल हो गए।

यह हादसा मिर्जापुर-वाराणसी सीमा पर हुआ, जहां ट्रकों की रफ्तार का कोई माई-बाप नहीं है। ट्रक का टायर तक इस कदर उछला कि वह दूर नाले में जा गिरा। ज़रा सोचिए उस दर्दनाक पीड़ा को उसे तड़पती आवाजों की कल्पना कीजिए, अगर टायर की ये दशा थी तो उसमें बैठे लोगों की क्या हालत हुई होगी!

 

लापरवाही के पहिए पर सवार है प्रशासन । संवेदना में एसपी ने दिया सरकारी बयान

 

यह पहली बार नहीं है जब अवैध रूप से दौड़ रहे ट्रकों ने मौत की फसल काटी है।हादसा इतना भयानक था कि ट्रक का टायर उछलकर नाले में जा गिरा। दुर्घटना ने न सिर्फ 10 जिंदगियां लील लीं, बल्कि सरकारी तंत्र की आंखें भी खोल दीं, हालांकि शायद ये हमेशा की तरह थोड़ी देर के लिए ही होगा। एसपी अभिनंदन ने बयान दिया कि ट्रैक्टर में सवार मजदूर काम से लौट रहे थे, और अचानक ट्रक ने टक्कर मार दी। साहब यह जवाब तो सबको पता है।ट्रक ने टक्कर मारी अभी आप उस ट्रक की इंक्वारी करेंगे ट्रक किसका है कौन लाया कहां जा रहा था तमाम वगैरा-वगैरा,/पर साहब! सवाल यहां यह है कि कैसे,अवैध तरीको से ट्रक बिना कागजों के और बिना फिटनेस के ही देखा जाएं तो नाबालिग चालकों द्वारा सड़कों पर आए दिन तमाम गाड़ियां कैसे दौड़ते हैं? क्या इससे पूर्व में जितने भी हादसे हुए हैं क्या वह सबक नहीं थे, क्या उन गाड़ियों से हुए हादसों के बाद के सारे नियम-कानून भी क्या कुचले जा रहे हैं, क्यों प्रशासन की आंखों पर पट्टी बंधी हुई है। क्या कोई बड़ा टारगेट है प्रशासन का, की कोई बड़ा हादसा हो फिर उसके बाद जाकर कानून का नियम होगा जिम्मेदार अपनी जिम्मेदारी निभाएंगे।??

यूनियन के अध्यक्ष राजेश दुबे का बयान इस मामले में काफी तीखा है। उन्होंने कहा, “यह हादसा न सिर्फ एक दुर्घटना है, बल्कि सरकार और प्रशासन की विफलता का काला धब्बा है। जब तलक जिम्मेदारो का गैर जिम्मेदारआना रवैया रहेगा ट्रकों को अनट्रेंड लोगो द्वारा चलवाया जायेगा,जो अब आम बात हो गई है, तब यह तो होना ही था। ‘हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के वाली कहावत यहां पूरी तरह से फिट बैठती है।”

 

लापरवाह सिस्टम से घर लौटते मजदूरों के परिवार का बिखरा मातम

मृतकों की सूची देखकर दिल दहल जाता है। भानू, विकास, अनिल, सूरज जैसे युवा अपने परिवार के लिए मेहनत-मजदूरी करके लौट रहे थे। ये वही लोग हैं जो छत ढलाई का काम करके किसी और का घर बना रहे थे, लेकिन खुद अपने घर लौटने का सपना अधूरा रह गया। इस हादसे ने इन मजदूरों के परिवारों को सड़क पर ला खड़ा किया।

घायलों में आकाश, जमुनी और अजय जैसे लोग हैं, जो अभी ज़िंदगी और मौत से लड़ रहे हैं। प्रशासन कह रहा है कि इन्हें वाराणसी के ट्रॉमा सेंटर में भेजा गया है। लेकिन सवाल यह है कि हादसे के बाद का इलाज क्यों, जब पहले से ही सड़कों पर चल रहे अवैध वाहनों पर नकेल कसी जा सकती थी?

 

 

 

 

नेताओं की फॉर्मेलिटी – “जख्मों पर मरहम या सिर्फ दिखावा ?

हादसे के बाद जहां देखा जाता है की नेता और उनके बयान आते हैं, जैसे वे सिर्फ कैमरे के सामने आकर संवेदनाएं व्यक्त करने का रिवाज निभाते हैं। पर इस मामले में राजेश दुबे की दरियादिली – मजदूरों के साथ खड़े है। इस भयानक हादसे के बाद, जहां प्रशासन और अन्य संस्थाएं अपनी नाकामी पर चुप्पी साधे रहीं, वहीं ‘मिर्जापुर असंगठित कामगार यूनियन’ के अध्यक्ष राजेश दुबे ने पीड़ित परिवारों के साथ मजबूती से खड़े होने का ऐलान किया। उनका बयान मजदूरों के लिए एक आशा की किरण है।

 

राजेश दुबे ने शोक व्यक्त करते हुए कहा, “यह घटना न सिर्फ दर्दनाक है, बल्कि सरकार और प्रशासन की लापरवाही की वजह से हुई है। यूनियन पीड़ित परिवारों के लिए हर तरह की कानूनी मदद मुफ्त में उपलब्ध कराएगी, और संविधान में मिलने वाले हक व मुआवजे की लड़ाई भी लड़ेगी।”

दुबे साहब ने मजदूर भाइयों के साथ एकजुटता दिखाते हुए कहा कि परिवारों को कहीं और भटकने की जरूरत नहीं है। उनकी यूनियन पीड़ितों के साथ हर कदम पर खड़ी है। यह दरियादिली और जनसेवा का सच्चा उदाहरण है, जो ऐसे समय में बेहद जरूरी है। ना कि झूठ रिवाज और दिखावे की फॉर्मेलिटी होनी चाहिए।

 

सपा के नेता पूर्व सांसद रमेश ने की सहायता

 

कहते हैं ‘जब तक सब ठीक होता है, तब तक कोई पूछने वाला नहीं’ आता,पर इस हृदविदारक घटना में कई परिवारों को बिखेर दिया, जहां एक ओर भाजपा के नेताओं को सामने आकर मदद करनी चाहिए थी वहां पर इस हादसे में समाजवादी पार्टी के नेता रमेशचंद्र बिंद ने अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए पीड़ित परिवारों के पास पहुंचकर सहायता की। उन्होंने हर मृतक के परिवार को 10-10 हजार रुपये की आर्थिक मदद दी।

यह एक संवेदनशील कदम था, जो दर्शाता है कि एक जननेता संकट के समय लोगों के बीच कैसे मदद पहुंचते हैं। रमेशचंद्र बिंद ने न सिर्फ संवेदनाएं व्यक्त कीं, बल्कि उन परिवारों की आर्थिक मदद करके उनके दुख को बांटने की कोशिश और आगे भी मदद करने का आश्वासन दिया। उनका यह कदम एक प्रशंसनीय पहल है, जो समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारी और संवेदनशीलता को दिखाता है।

Pm modi ने दुर्घटना में हुई जानमाल की हानि पर शोक व्यक्त किया और प्रत्येक मृतक के परिजन को 2 लाख रुपये तथा घायलों को 50,000 रुपये मुआवजा देने की घोषणा की। उत्तर प्रदेश के Cm yogi adityanath  ने भी मृतकों के परिजनों के लिए समान मुआवजे की घोषणा की। पीएम मोदी ने एक्सक्लूसिव बातचीत में कहा, “उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में हुआ सड़क हादसा बेहद दुखद है। इस दुर्घटना में जान गंवाने वालों के शोक संतप्त परिवारों के प्रति मेरी गहरी संवेदना है। ईश्वर उन्हें यह दुख सहने की शक्ति दे इसके साथ ही मैं सभी घायलों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करता हूं।”

लेकिन यहां सवाल यह बनता है कि मुआवजे की रस्म अदायगी: “चिराग बुझने के बाद याद आया तेल!” तो 

क्या मुआवजे से उस दर्द को कम किया जा सकता है, जो उन परिवारों ने झेला? “घर का चिराग बुझा, और क्या मरहम लगाने आई है!” सरकार को यह नही दिख रहा की हादसे का मुख्य कारण क्या है। सरकार का यह कदम काफी काबिले तारीफ है संवेदनशीलता के मामले पर पर मदद तो असल में, तब होगा जब सड़कों पर नियमों के तहत जिम्मेदार अपनी जिम्मेदारी निभाएंगे, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों। क्योंकि कोई भी नहीं चाहता कि उसे फ्री की रेवड़ी मिले।

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नियमों की धज्जियां और प्रशासन की चुप्पी

इस हादसे ने एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं कि सड़क पर दौड़ते यह अवैध वाहन किसकी शह पर चल रहे हैं? “सरकारी नियमों का पालन होना चाहिए”, या यह केवल किताबों कागजों में ही लिखा है। हकीकत में सड़क पर दौड़ते यह बेलगाम ट्रक और बगैर लाइसेंस के चालकों की वजह से हर दिन किसी का घर उजड़ता है, और प्रशासन कानों में रुई डालकर बैठा रहता है। ये घटनाएं हमें सीधा यह सवाल पूछने पर मजबूर करती हैं कि आखिर प्रशासन कब जागेगा? “ऊंट के मुंह में जीरा” जैसी कार्रवाई करके अधिकारियों का काम नहीं चलता। ARTO और खनन विभाग अगर समय पर ओवरलोड और डग्गामार वाहनों पर कार्रवाई करते, तो आज यह हादसे टल सकते थे। लेकिन नहीं, यहां पर तो “काठ की हांडी बार-बार चढ़ती है” वाली बात है— एक हादसा होता है, फिर वही पुरानी लापरवाही।

 

सड़कों पर कहर और प्रशासन की “कुंभकर्णी” नींद

ओवरलोड और अनफिट वाहन सड़कों पर दौड़ते रहते हैं, और हमारे अधिकारी गहरी नींद में हैं। इन हादसों के पीछे सिर्फ वाहनों की तेज रफ्तार ही नहीं, बल्कि उन अधिकारियों की ढीली कार्यप्रणाली भी है जो बिना सोचे-समझे वाहनों को अनुमति देते हैं। “नौ दिन चले अढ़ाई कोस” की तर्ज पर, अधिकारी सिर्फ अपनी जेबें भरते रहते हैं, और जनता को अपनी जान गंवानी पड़ती है।

 

अंतिम सवाल – कब थमेगा मौत का यह सिलसिला ?

कब तक हमारी सड़कों पर मजदूरों की जान इसी तरह जाती रहेगी? कब तक प्रशासन आंखें मूंदे रहेगा? और कब तक नियम-कानून सिर्फ किताबों और भाषणों तक सीमित रहेंगे?

यह हादसा सिर्फ एक चेतावनी नहीं, बल्कि एक गंभीर सवाल है – जिसका जवाब देना सरकार और प्रशासन के लिए अब अनिवार्य हो गया है।क्या यह हादसा आखिरी होगा?

हर बार की तरह एक बार फिर से संवेदनाएं, मुआवजे और बयान आएंगे। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह आखिरी हादसा होगा? या फिर कुछ दिनों बाद हम एक और ऐसी ही खबर पढ़ेंगे, जहां फिर से 10-15 परिवार तबाह हो जाएंगे। ‘चिराग बुझाने के बाद भी हवा का बहना बंद नहीं होता’, उसी तरह यह हादसे भी तब तक होते रहेंगे, जब तक सिस्टम में सुधार नहीं किया जाएगा।?

 

क्या अब वक्त नहीं आ गया है कि इन हादसों पर गंभीरता से काम किया जाए?

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