मिर्जापुर: विकराल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में छुट्टी की मांग,जिम्मेदार अधिकारियों का बुद्धि परीक्षण पर वरिष्ठ पत्रकार का अनुभाव

📝सलिल पैंडेज़ की पोस्टी के विचार

“बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में वरिष्ठ पत्रकार की एक ग्राउंड रिपोर्ट स्थिर आंकड़े पर पुराने पुराने अनुभव क्या समझेंगे जिला या मंडलीय जिम्मेदार अधिकारी”

 

 

संस्था। जिले में बाढ़ की स्थिति विकराल रूप लेल है। गंगा और पहाड़ी नदियों के उफान के बीच गांव-गांव जलमग्न हो गए हैं। वरिष्ठ पत्रकार सलिल पेंज ने इस जायज पर प्रदेश की जमीनी रिपोर्ट में सहमति के अनुभाओं को साझा करते हुए कहा कि उन्होंने बाढ़ के खतरे को देखते हुए अपनी बात सामने रखी है, लेकिन सवाल अब भी खड़ा हो गया है। किस जिले के जिम्मेदार अधिकारी इन जमीनी हकीकतों को समझेंगे?

प्रवेश द्वार की संपत्ति क्या है।—

 वयोवृद्ध पत्रकार की रचनाएँ, दार्शनिक व पौराणिक तारिके, दार्शनिक व पौराणिक तारिके, वयोवृद्ध पत्रकार सलिल पैंडेज़ की सहजता से लिखी गई बातें। सोशल मीडिया पर एक लेख वायरल हो रहा है जिसमें बड़े पैमाने पर धार्मिक तरीकों से उन्होंने लोकप्रिय आम जनता और सरकारी कर्मचारियों की नजरों को देखते हुए बात को बड़े पैमाने पर लिखा है। जो इस तरीके से है. आई ले उस आलेख पर आधारित हैं जहां उन्होंने विभिन्न साम्य से अपनी बात रखते हुए उच्च जिम्मेदार अधिकारियों तक अपने दीक्षांत समारोह के आधार पर अपनी बातों को साझा किया है। जो इस तरीके से है—

◆बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में अवकाश घोषित किया जाए-
मिर्जापुर। गांव-गरीब नेटवर्क ने बाढ़ जैसी विषम स्थिति को देखते हुए शिक्षण संस्थाओं में अवकाश घोषित करने की मांग की है।
   नेटवर्क की ओर से जारी मांग-पत्र में कहा गया है कि  गंगा सहित पहाड़ी नदियों के जलस्तर में वृद्धि के अलावा सिंचाई बांधों से अतिरिक्त जल प्रवाहित किए जाने से पूरे जिले में प्राकृतिक आपदा जैसी स्थिति हो गई है । पानी की विभीषिका में फंसे परिवार के न तो बच्चे स्कूल जा पाएंगे और इन इलाकों में रहने वाले शिक्षक स्कूल पहुंच पाएंगे। ऐसी स्थिति में आधे-अधूरे ढंग से ही स्कूल चल पाएंगे। इसके साथ ही बाढ़ में ड्यूटी करने वाले कर्मचारियों के अलावा उन विभागों के कर्मचारियों को बाढ़-अवकाश दिया जाना चाहिए, जो बाढ़ के कारण अपने क्षेत्र में ही फंसे हुए हैं। कहीं पानी से तो कहीं पेड़ गिरने से आवागमन तक बाधित है। समय पर दफ्तरों में पहुंच पाना संभव नहीं हो पा रहा है। यह अवकाश सरकारी के साथ प्राइवेट सेक्टर में भी लागू होना चाहिए। यह पूर्णतया मानवीय पहलू है।
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◆सलिल पांडेय, मिर्जापुर।
व्हाट्सएप का स्क्रीनशॉट

 

 

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