त्योहार की खुशियों में छिपा गहरा दर्द: गाजीपुर में पेंशन की लालसा पर सरकारी ताले

त्योहार की खुशियों में छिपा गहरा दर्द: गाजीपुर में पेंशन की लालसा पर सरकारी ताले

 

कागजी वादों का जश्न: गाजीपुर के सफाईकर्मियों की उम्मीदें और अधिकारियों का आश्वासन का ठंडा रवैया

 

 

गाजीपुर – दशहरा और दीपावली की आहट सुनते ही एक ओर जहां लोग खुशियों की तैयारी में जुटे हैं, वहीं गाजीपुर नगर पालिका के सेवानिवृत्त सफाईकर्मियों के घरों में अंधेरा पसरा है। वर्षों की मेहनत के बाद भी अपने बकाया पेंशन और फंड के इंतजार में इन कर्मचारियों के परिवारों का गुस्सा अब फूटने को तैयार है। कहते हैं, “ऊंट के मुंह में जीरा” लेकिन यहां तो लगता है कि “ऊंट ही गायब है और सिर्फ जीरे का वादा बचा है।”

 

आदेश आए, अधिकारी सो गए

 

सरकार के सख्त आदेशों और संवैधानिक नियमों के बावजूद जिम्मेदार अधिकारियों का ढीला रवैया साफ तौर पर नज़र आ रहा है। ऐसा लगता है मानो उनके कानों में रुई ठूंसी हो। भाजपा अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के मीडिया प्रभारी विप्लव रावत और सफाईकर्मी प्रदीप रावत ने मंगलवार को इस मुद्दे को अधिशासी अभियंता अमृता के सामने रखा, लेकिन वहां से वही “देखेंगे, करेंगे, सोचना पड़ेगा” वाली घिसी-पिटी बातें निकलीं।

 

क्या यही सरकारी नियमों की इज्जत है? जब ऊपर से आदेश आते हैं कि सभी कर्मचारियों के बकाया का तुरंत भुगतान हो, तो यह आदेश सिर्फ कागजों तक ही सीमित क्यों रह जाते हैं? इन अधिकारियों को शायद इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ता कि त्योहारों के समय, जब हर कोई अपने घर में खुशियों की रौशनी फैलाने की तैयारी में है, इन कर्मचारियों के घर में अंधेरा क्यों है। “न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी” वाली कहावत इनकी कार्यशैली पर एकदम सटीक बैठती है।

इस खबर को भी पढ़े – मिर्जापुर में सड़क हादसा ,10 लोगो की मौत , पीएम सीएम ने 2-2 लाख की सहायता की , कब रुकेगा सड़क हादसा , कौन है इनसब का जिम्मेदार

कर्मचारियों का गुस्सा और अधिकारियों की बेरुखी

 

सेवानिवृत्त सफाईकर्मी, जिन्होंने अपनी जिंदगी शहर की गंदगी साफ करते हुए बिता दी, आज खुद प्रशासनिक गंदगी का शिकार हो रहे हैं। उनके परिजन सवाल कर रहे हैं—क्या उनकी मेहनत का फल यही है कि वे अपने बकाया के लिए दर-दर भटकें? दशहरा और दीपावली पर जहां सब नई उम्मीदों और खुशियों की बात करते हैं, इन कर्मियों के परिवारों के पास सिर्फ गुस्सा और आंसू हैं।

 

विप्लव रावत और प्रदीप रावत ने इस मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठाया, लेकिन जैसा कि अक्सर होता है, अधिकारी बड़े आराम से यह कहकर निकल गए कि “जल्द ही भुगतान कर दिया जाएगा।” लेकिन सवाल यह है कि कब? “देर आए, दुरुस्त आए” के चक्कर में इन कर्मचारियों के त्योहार भी कहीं खत्म न हो जाएं।

 

अधिशासी अभियंता का आधा-अधूरा आश्वासन

 

अधिशासी अभियंता अमृता ने कर्मचारियों को आश्वासन दिया कि जल्द ही पेंशन और फंड का भुगतान कर दिया जाएगा। लेकिन यहां सवाल उठता है कि यह “जल्द” कब आएगा? क्या यह वह “जल्द” है जो कभी आता ही नहीं? सरकारी कागजों और अधिकारियों के वादों के बीच इन परिवारों की उम्मीदें दम तोड़ रही हैं।

इस खबर को भी पढ़े – Bihar News :- गाय के बच्चे का प्रेम देख आपके चेहरे पर आ जाएगा मुस्कान , बिहार के एक व्यक्ति का वीडियो हो रहा वायरल , कौन है वह शख्श जिसे वीडियो में गाय का बच्चा छोड़ ही नहीं रहा , जानने के लिए खबर को पुरा पढ़े 

कहावत है, “जब तक सांप काट न ले, तब तक लाठी नहीं उठाई जाती।” यहां भी वही हाल है। लगता है कि अधिकारी तब तक चुपचाप बैठे रहेंगे, जब तक कर्मचारियों का गुस्सा सड़कों पर नहीं फूटता।

 

 कब सुधरेंगे हालात ?

 

इस पूरे प्रकरण से साफ है कि सरकारी आदेश सिर्फ कागजों में रहते हैं और जमीनी स्तर पर अधिकारी अपने ढर्रे पर चलते हैं। सवाल यह उठता है कि क्या यही हालात बने रहेंगे? क्या इन सफाईकर्मियों को उनके अधिकारों का भुगतान तभी मिलेगा, जब वे अपना गुस्सा किसी बड़े प्रदर्शन में बदलेंगे?

 

“जब तक सरकार और अधिकारी मिलकर इन मुद्दों को सुलझाने में संजीदा नहीं होंगे, तब तक ऐसे पेंशन और फंड की लड़ाई जारी रहेगी।” कहावत है, “अंधेर नगरी, चौपट राजा,” और ऐसा लगता है कि गाजीपुर में भी यही चल रहा है।

 

अब देखना यह है कि यह आश्वासन कितना सच साबित होता है, या फिर यह भी सिर्फ एक औपचारिक बयान बनकर रह जाता है।

news portal development company in india
marketmystique
Recent Posts