Chhath puja : कितना महत्वपूर्ण है छठ महापर्व, क्या हैं इसकी मान्यताएं

Chhath puja : कितना महत्वपूर्ण है छठ महापर्व, क्या हैं इसकी मान्यताएं

 

हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक छठ पर्व (Chhath puja) जो मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और झारखंड में मनाया जाता है। इस दिन भक्त छठी मईया और भगवान सूर्य की पूजा-अर्चना और कठिन व्रत का पालन करते हैं। छठ पर्व (Chhath) या षष्‍ठी पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला आस्था का बड़ा पर्व है। दिपावली के 6 दिनों बाद छठ पूजा की शुरुआत होती है। इस साल छठ पूजा की शुरुआत 5 नवम्बर को नहाय-खाय के साथ हुई। इसके बाद छठ पर्व चार दिनों तक चलते हुए खरना, संध्या अर्घ्य, प्रात:कालीन अर्घ्य के साथ 8 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद समाप्त होगा। छठ पूजा का पर्व सूर्य देव को धन्यवाद देने और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए मनाया जाता है। लोग इस दौरान सूर्य देव की बहन छठी मईया की भी पूजा करते हैं। वहीं, इस पावन पर्व को लेकर कई कथाएं भी प्रचलित हैं। इस महापर्व की शुरुआत कब और कैसे हुई ये हमें कई पौराणिक कथाओं में मिलता है।

 

                      Chhath puja

 

पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि सतयुग में भगवान श्रीराम और माता सीता ने, द्वापर युग में दानवीर कर्ण और द्रौपदी ने सूर्य की उपासना कर इस व्रत की शुरुआत की थी। इसके अलावा, छठी मैया की पूजा का उल्लेख राजा प्रियंवद की कथा में भी मिलता है, जिन्होंने पहली बार इस व्रत का पालन किया।

 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, लंकापति रावण का वध करने के बाद जब भगवान श्रीराम अयोध्या लौटे तब उनपर रावण के वध का पाप था, जिससे मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर ऋषि मुग्दल ने श्रीराम और माता सीता को यज्ञ के लिए अपने आश्रम में बुलाया। माता सीता ने कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना की और व्रत भी रखा। इस दौरान राम जी और सीता माता ने पूरे छह दिनों तक मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर पूजा-पाठ किया। इस तरह छठ पर्व (Chhath puja) का इतिहास रामायण काल से जुड़ा है।

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इसके अलावा मान्यता है कि द्रौपदी ने पांच पांडवों के बेहतर स्वास्थ्य और सुखी जीवन लिए छठ व्रत रखा था और भगवान सूर्य की उपासना की थी। इसी के परिणामस्वरूप पांडवों को उनका खोया हुए राजपाट वापस मिला था।

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