**सड़कों का सत्यानाश और विकास का तमाशा: मीरजापुर में कागजी ‘कायाकल्प’ का खेल**

यूपी की मलाई दार सड़क
सड़कों के विकास के नए तस्वीर

https://bharatjantanews.com/archives/9867*स्वतंत्र पत्रकार चंदन दुबे*
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*न्यूज़ कैप्शन*:

*चुनार विधानसभा और योगी के खास विधायक, और उसके बाद भी सड़क बना ताल तलैया*

हुज़ूर, मीरजापुर की सड़कों पर अब गड्ढे नहीं, बल्कि गड्ढों में सड़कें हैं! योगी जी के ‘गड्ढा मुक्त’ वादे का ये हाल है कि लगता है, अब सड़कों को तैरने के लिए नाव चाहिए। कहावत तो सुनी थी कि ‘ऊँची दुकान, फीके पकवान’, पर यहाँ तो ‘सख्त सरकार, ध्वस्त सड़क’ वाली कहावत फिट बैठती है। लगता है, अफ़सरों ने सरकार की सख्ती को बोर में बांध कर गड्ढों में फेंक दिया है!

मीरजापुर—चुनार: मीरजापुर की सड़कों पर बहता पानी दरअसल विकास की गंगा नहीं, बल्कि सरकार के वादों की बेबसी का प्रतिक दिखता है। जब योगी सरकार ने गड्ढा मुक्त सड़कों का वादा किया सत्ता की राजधानी लखनऊ से , तो इसके साथ ही ग्रामीण क्षेत्र के लोगो में उम्मीदें जगी थीं कि अब उल्का पिंड के जैसे गिरने के बाद दिखने वाले सड़कें इतनी चिकनी होंगी कि गाड़ी चलाते समय गड्ढों का नामोनिशान भी नहीं रहेगा। लेकिन मीरजापुर के जमालपुर खंड में सड़कों की हालत देख कर लगता है कि यह वादा एक बेमिसाल मजाक बन कर रह गया है। सरकार के “कायाकल्प” के संकल्प ने सड़कों को गड्ढों की “सर्कस” बना दिया है, जहां बारिश होते ही हर गड्ढा एक नया जलाशय बन जाता है। और मौजूदा समय में इन सड़कें की तस्वीरें जलाशय का रूप ले चुकी हैं, जहां हर बारिश के बाद गड्ढों में पानी भरा रहता है। भाईपुर-डवक मार्ग, अदलहाट-ओड़ी-देवरिला मार्ग, जमालपुर-गोगहरा-चरगोड़ा मार्ग, और बड़भुईली-हसौली-मुड़हुआ मार्ग पर सड़कों का हाल ऐसा है मानोPWD विभाग व सड़क निर्माण के ठेकेदारों ने गड्ढों को बनाकर उन पर मिर्जापुर के गंगा नदी से जल का स्रोत निकालकर लगता है कि ‘विकास की गंगा’ बहाने की सौगंध खा रखी हो। ऐसे में स्कूली बच्चों और ग्रामीणों की मुसीबतें सातवें आसमान पर हैं। कहने को तो ये सड़कें हैं, लेकिन देखने पर ये “ताल-तलैया” का दृश्य पेश करती हैं। सरकार का एक हाथ ‘शिक्षा का अधिकार’ पर है, तो दूसरा हाथ ‘सड़क सुरक्षा’ को बेचने में लगा हुआ है।जिस ‘कायाकल्प’ का ढिंढोरा पीटा गया, वह अब सड़कों के गड्ढों में दफन हो गया है। इस बात को समझना ज़रूरी है कि कागजों पर बड़े-बड़े वादे करना जितना आसान है, ज़मीन पर उन वादों को उतारना उतना ही कठिन। मीरजापुर के जमालपुर में सड़कों की दुर्दशा ने यह साबित कर दिया कि यह सिर्फ़ चुनावी भाषणों और कागजी योजनाओं का ही नतीजा है। सड़कों पर बने ये गड्ढे सरकार की ‘विकास गाथा’ की असलियत को उजागर करते हैं।
**विकास की जगह विनाश**
वह कहते है,ना “ऊँची दुकान, फीका पकवान।” मीरजापुर की सड़कों की हालात इसी कहावत का जीता-जागता उदाहरण है। सरकार के विकास के दावे बड़े हैं, लेकिन हकीकत में जनता को गड्ढों में धकेला जा रहा है। हर जगह सड़कों पर खाई और नाले बन चुके हैं। जब यह कहा जाता है कि ‘सड़कें देश की धमनियां होती हैं’, तो यहां की सड़कों ने मानो उन धमनियों के ब्लाकेज ब्लेक होल हो।
**कागज़ी शेर और हकीकत की बकरी**

सरकार का ‘कायाकल्प’ तो कागजों पर शेर बना घूम रहा है, लेकिन हकीकत में ये एक बेबस बकरी साबित हो रहा है। जिन सड़कों की मरम्मत और निर्माण की बात होनी चाहिए, वहां प्रशासन और संबंधित विभागों की घोर लापरवाही ने उन्हें भुला दिया है। अन्न दाता मंच के संयोजक चौधरी रमेश सिंह का बार-बार प्रशासन को चेताना और फिर भी कोई कदम न उठाया जाना, बताता है कि प्रशासन की नजर में जनता की भलाई की अहमियत कितनी है। एक पुरानी कहावत है, “सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठम-लट्ठ,” लेकिन यहां तो सूत और कपास दोनों हैं, फिर भी बुनाई अधूरी है।
**अधिकारियों की लापरवाही**
“न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी।” ये कहावत हमारे प्रशासन पर बिलकुल फिट बैठती है। जल जीवन मिशन और पीडब्विभाग का रवैया ऐसा है जैसे काम करने की कोई मंशा ही नहीं है। बरसात में पानी की निकासी का प्रबंधन नहीं होना और सड़कों की खुदाई का कोई प्लान न होना, ये सभी बातें प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े करती हैं। ऐसा लगता है कि जिम्मेदार अधिकारी मान चुके हैं कि जनता की परेशानियों का हल उनके एजेंडे में नहीं है।

**अन्नदाता मंच की आवाज़ या सन्नाटा?**
अन्नदाता मंच के संयोजक चौधरी रमेश सिंह की यह चिंता सही है कि अगर जल्द ही मरम्मत का काम नहीं हुआ, तो कोई बड़ा हादसा होना निश्चित है। लेकिन सवाल ये है कि कितनी बार प्रशासन के दरवाज़े खटखटाने पर भी कुछ नहीं हो रहा है? यह मुद्दा सिर्फ़ किसानों का नहीं, बल्कि पूरे समाज का है, और यह तभी हल होगा जब जनता की आवाज़ सन्नाटे में खो नहीं जाएगी, बल्कि सत्ता के गलियारों में गूंजेगी।
**सरकारी वादों का माखौल**
अन्नदाता मंच के संयोजक रमेश चौरसिया ने कहा कि योगी सरकार की “गड्ढा मुक्त” सड़कों के वादे को लेकर जनता के दिलों में उम्मीद का संचार हुआ था। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोकसभा चुनाव के बाद बड़ी बैठक में अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए थे कि कानून व्यवस्था और जनहित के मामलों में कोई कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। लेकिन अगर मीरजापुर की सड़कों की हालत देखें, तो लगता है कि ये वादे महज राजनीतिक भाषणों का हिस्सा बनकर रह गए हैं, और जमीनी हकीकत में उनका कोई अता-पता नहीं है।सरकार कहती है, “सबका साथ, सबका विकास।” मगर यहाँ तो “सबका साथ, सबका विनाश” नजर आता है। सरकारी योजनाओं और वादों का यह हाल है कि वे सिर्फ कागज़ों पर सिमट कर रह गई हैं। “हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और।” इस कहावत में ही इन सरकारी वादों का पूरा सार छिपा हुआ है। जहां अगर देखे मौजूदा समस्या का निष्कर्ष निकाला जाए तो यह लिखने में किसी प्रकार की झिझक नहीं है की मीरजापुर की सड़कें अब “अक्ल का अंधा और गांठ का पूरा” वाक्यांश को चरितार्थ कर रही हैं। जहां अक्ल की कमी ने प्रशासन को अंधा कर दिया है, वहीं विकास की गंगा का पानी गड्ढों में खो गया है। जनता की जान जोखिम में है, और ये तमाशा कब खत्म होगा, इसका कोई अंदाजा नहीं दिख रहा। आखिर में यही कहा जा सकता है, “सड़कें हैं या गड्ढे, पूछो मत जनाब, ये है विकास का खालिस जवाब।”
सरकार और प्रशासन को अब समय से पहले जागना होगा, वरना ये गड्ढे उनके चुनावी वादों की कब्र बन सकते हैं। जनता सब देख रही है, और जब पानी सिर से ऊपर हो जाएगा, तो वह भी अपने जवाब के लिए तैयार हो जाएगी।

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