मिर्ज़ापुर में अतिक्रमण जमीन पर बने प्रधानमंत्री आवास योजना और शौचालय को हटाया गया , सरकारी फंड को बर्बाद करता सिस्टम , आवास पास करते समय सही जाँच क्यो नहीं हुई ? , ग्राम प्रधान और सेकेट्री लाभार्थियों के साथ फ्रॉड किये ?

*स्वतंत्र पत्रकार चंदन गान*

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मिर्ज़ापुर में अतिक्रमण जमीन पर बने प्रधानमंत्री आवास योजना और शौचालय को हटाया गया , सरकारी फंड को बर्बाद करता सिस्टम , आवास पास करते समय सही जाँच क्यो नहीं हुई ? , ग्राम प्रधान और सेकेट्री लाभार्थियों के साथ फ्रॉड किये ?

योगी आदित्यनाथ के करीबी बनने के प्रयास में चुनार तहसील के तहसीलदार ने गांव में पुराने भ्रष्टाचार के मामलों को छुपाने के लिए एक विवादास्पद कदम उठाया। उन्होंने सरकारी विभाग की लापरवाहियों को छुपाने के लिए बुलडोजर चलाया और इस कार्रवाई को मीडिया में हवाई वाहवाही के साथ प्रस्तुत किया।

चुनार तहसीलदार शाह ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए बंजर भूमि और तालाब पर हुए अवैध अतिक्रमण को हटाने के नाम पर बुलडोजर चलाया। लेकिन यह कार्रवाई मात्र एक दिखावा थी, जिसे प्रशासन की छवि को चमकाने के लिए उठाया गया कदम बताया जा सकता है। मीडिया में इसे प्रशासन की प्रभावी कार्रवाई के रूप में पेश किया गया, जबकि वास्तविकता कुछ और

 

इस “सुपरफास्ट एक्शन” के तहत ध्वस्त किए गए निर्माणों में सरकारी योजनाओं के तहत बनाए गए शौचालय और आवास शामिल थे। इन निर्माणों को बिना किसी जांच के अवैध अतिक्रमण के नाम पर तोड़ दिया गया। यह कार्रवाई दर्शाती है कि कैसे सरकारी पैसे का दुरुपयोग हुआ और प्रशासन की लापरवाहियों को छुपाने का प्रयास किया गया। सरकारी विभाग की जिम्मेदारी यह है कि वे सुनिश्चित करें कि फंड का सही उपयोग हो, लेकिन इस मामले में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।

 

 

 

 

तहसील के छोटा मीरजापुर गांव में हाल ही में तहसीलदार योगेंद्र शरण शाह की अगुआई में अतिक्रमण के खिलाफ चलाए गए अभियान ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर एक बडा सवाल उठाए हैं। सरकारी काले कारनामे को छुपाने के लिए सरकारी मशीनरी ने बंजर भूमि और तालाब पर हुए अवैध अतिक्रमण को हटाने के नाम पर बुलडोजर चलवा दिया और इस कार्रवाई को बड़े अखबारों में प्रमुखता से छापा गया।

 

तहसीलदार शाह के नेतृत्व में पुलिस और राजस्व टीम ने मंगलवार के दिन 3.9.2024को वाराणसी-मीरजापुर स्टेट हाईवे पर आठ बिस्वा भूमि पर बने अस्थायी निर्माण और बाउंड्रीवाल को बुलडोजर से ढहा दिया। इस खबर को अखबारों में इस कार्रवाई की सख्ती की तारीफ करते हुए लिखा गया कि प्रशासन ने किसी की एक न चलने दी। लेकिन क्या यह केवल ऊपर बैठे उच्च निष्ठावान अधिकारियों को गुमराह करते हुए, मीडिया के लिए बनाई गई एक छवि है?

कहते है की, “सपने में दीवारें गिराने से कुछ नहीं होता”, और यही हाल इस अभियान का है। केवल बुलडोजर चलाने से क्या असली भ्रष्टाचार की कहानी छुप जायेगी या समाप्त हो सकता है? यह दिखावा नहीं, बल्कि वास्तविकता है कि ऐसे मामलों में केवल मीडिया में छवि चमकाने का तरीका अपनाया जाता है। पर वही कहते हैं न कि सच छुप नहीं सकता बनावटी वसूलो वैसे ही भ्रष्टाचार भी नहीं छुप सकता पर्दे के पीछे।

 

असली सच्चाई यह है कि अतिक्रमण हटाने की आड़ में प्रशासन ने अपने भ्रष्टाचार को छुपाने की कवायद को साफ किया है। क्यों की जिन निर्माणों को तोड़ा गया है। वह प्रधानमंत्री योजना के मुहिम के फंड का दुरप्रयोग को छुपाने का एक असफल प्रयास साबित हुआ, क्यों की स्थानीय प्रशासन ने प्रधानमंत्री फंड का दुरप्रयोग सरकारी योजना के निर्माण को सही तरीके से वेरिफाई किया होता, तो इस स्थिति की आवश्यकता ही न होती।

 

जांच के दौरान यह खुलासा हुआ कि अतिक्रमण वाले स्थानों पर प्रधानमंत्री योजना के तहत शौचालय और आवास का निर्माण किया गया था, जिन्हें बुलडोजर के ज़रिए तोड़ा गया। यह सवाल उठता है कि क्या इन निर्माणों की जांच उस वक्त क्यों नही की गई थी? शौचालय और आवास का निर्माण सरकारी धन से हुआ था, और इसे अवैध निर्माण के नाम पर तोड़ना कहां तक उचित था? अगर सूत्रों की माने तो जनता के टैक्स से भरे गए सरकारी खजाने का कमीशन खोरी के लूट के कारण जम कर लूटा गया है, सवाल तो यह बनता है की क्या लाभ्यार्थि को जो लाभ मिला था, सरकारी सिस्टम की लापरवाही के कारण सहकारी धन का नुकसान तो हुआ ही हुआ, जहां अहमसवाल यह है की क्या वही पीड़ितों वर्ग को क्या पुनः लाभ फिर प्रात होगा,।।

 

जिन भवनों और शौचालय को तोड़कर अतिक्रमण मुक्त बनाया गया है वह सरकारी पैसे से निर्माण कराए गए थे ताज्जुब तो यहां हो रहा है कि सरकारी धन से बनाए गए निर्माण दिन शौचालय या मकान को कैसे गिरा दिया गया अतिक्रमण दिखा कर, वही सूत्रों से एक बात सामने आया की ग्राम प्रधान प्रियंका सिंह और उनके प्रतिनिधियों ने शौचालय निर्माण के नाम पर दो-दो हजार रुपये वसूले थे, जिसके आरोप का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है। क्या यही वह भ्रष्टाचार है जो सरकारी फंड के दुरुपयोग का खुलासा करता है?

 

सच्चाई तो यह है कि सरकारी योजनाओं का लाभ गरीबों तक पहुंचाने के बजाय भ्रष्टाचार के खेल का हिस्सा बन चुका है। सरकारी अधिकारी अपनी जिम्मेदारियों को निभाने के बजाय निजी लाभ की ओर ध्यान दे रहे हैं। लेकिन उसकी कीमत चुकानी भी पड़ती है”, और यही स्थिति इस मामले में देखने को मिल रही है।

 

अब सवाल यह है कि जब सरकारी योजनाओं का दुरुपयोग कर भ्रष्टाचार की नींव रखी जा रही है, तो बुलडोजर उन जिम्मेदारों के घर पर कब चलेगा जिन्होंने अपने सरकारी दायित्व के पद को नहीं निभाया पद का दुरुपयोग किया है? असली कार्रवाई तो तब होगी जब सरकारी पैसे की लूट को रोका और उन अधिकारियों से रिकवरी किया जाए जिन्होंने मौके का मुआयना किया बिना धन का बंदर बाट कर दिया ऐसे गए जिम्मेदारों के ऊपर कब चलेगा बुलडोजर ? क्योंकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का मनसा है कि भ्रष्टाचार मुक्त उत्तर प्रदेश की जगह उत्तम प्रदेश बने भ्रष्टाचार को समाप्त करने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाए। पर यहां भ्रष्टाचार को खत्म करने की जगह उस पर मिट्टी डाला जा रहा है।

 

चुनार तहसील में हुए इस भ्रष्टाचार का पर्दाफाश और उसकी जांच कितनी सख्ती से की जाएगी, यह भविष्य के गर्त में है। जब तक असली भ्रष्टाचार और काले कारनामों पर ठोस कार्रवाई नहीं की जाएगी, तब तक प्रशासन की इस तरह की कार्रवाइयाँ सिर्फ धूल झोंकने के काम आएँगी। क्यों की इस कार्रवाई के माध्यम से विभाग की लापरवाहियों को छुपाने का प्रयास किया गया है। सरकारी फंड का दुरुपयोग, अधिकारी की जिम्मेदारियों की अनदेखी, और भ्रष्टाचार की गहरी जड़ों को नष्ट करने की बजाय, प्रशासन ने केवल दिखावे की कार्रवाई की है।

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