हिंदी नवजागरण के प्रणेता भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र को सलाम :मिर्जापुर: हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर डॉ. भवदेव पांडेय शोध संस्थान में संगोष्ठी का आयोजन

वरिष्ठ पत्रकार लेखक सलिल पाण्डे 

हिंदी के प्रबल हिमायती थे भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र

कार्यक्रम स्थल की फोटो


हिंदी नवजागरण के प्रणेता भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र को सलाम

मिर्जापुर: हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर डॉ. भवदेव पांडेय शोध संस्थान में संगोष्ठी का आयोजन

मिर्जापुर। हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर मिर्जापुर के तिवराने टोला स्थित डॉ. भवदेव पांडेय शोध संस्थान में एक शोधपरक संगोष्ठी आयोजित की गई, जिसमें हिंदी नवजागरण काल के प्रणेता और राष्ट्रभाषा के प्रबल हिमायती भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र के योगदान पर विस्तार से चर्चा की गई। संगोष्ठी में वक्ताओं ने उनकी भाषा नीति, उनके संघर्ष और हिंदी के उत्थान में उनके योगदान को नए नजरिए से प्रस्तुत किया।

संयोजक सलिल पांडेय ने अपने संबोधन में कहा, “भारतेंदु बाबू को न केवल ब्रिटिश शासकों से मोर्चा लेना पड़ा, बल्कि उन भारतीय प्रभावशाली लोगों से भी सामना करना पड़ा, जो हिंदी के विरोधी थे। इनमें सर सैयद अहमद खां और उनके बाल-गुरु राजा शिव प्रसाद ‘सितारे हिंद’ प्रमुख थे। भारतेंदु बाबू को राजनीति और भाषा के बीच की चालबाजियों से नफरत थी। वे मानते थे कि आम जनता की भाषा ही असली राष्ट्रीय अस्मिता की अभिव्यक्ति है।”

दोहों में व्याख्यान और भाषा नीति
साल 1877 में भारतेन्दु बाबू ने प्रयाग की हिंदी-वर्धिनी सभा में ‘हिंदी की उन्नति’ विषय पर 98 दोहों का एक व्याख्यान दिया था, जिसे बालकृष्ण भट्ट ने अपनी पत्रिका ‘हिंदी प्रदीप’ में प्रकाशित किया। इसमें उन्होंने कहा था, _”निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के मिटत न हिय को सूल”_, जो हिंदी उत्थान का बीजमंत्र बन गया।

‘हमें लूटा, हमें बरबाद किया’
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए साहित्यकार अनिल यादव ने बदलते युग की विसंगतियों पर गजल के माध्यम से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “हमें लूटा, हमें बरबाद किया, अब हमें बदनाम कर रहे हैं, ये हमारी बेबसी है कि हम उन्हें सलाम कर रहे हैं,” जिससे श्रोताओं के बीच भावनाओं की लहर दौड़ गई।

मुख्य वक्ता केशव नारायण पाठक ने प्रेमघन जी के योगदान को रेखांकित करते हुए कहा, “भारतेन्दु बाबू मिर्जापुर के साहित्यकार चौधरी बदरी नारायण उपाध्याय ‘प्रेमघन’ की कोठी में विद्वानों के साथ हिंदी के नव स्वरूप पर गहन चर्चा किया करते थे। यहां आचार्य रामचंद्र शुक्ल, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ जैसे दिग्गजों ने विदेशी भाषा के प्रभाव को खत्म करने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए।”

संगोष्ठी में संगम लाल गुप्त,विश्वजीत दुबे और जय कुमार श्रीवास्तव  ने भी अपने विचार व्यक्त किए और हिंदी नवजागरण काल के योगदान को सराहा।

 

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