मिर्जापुर का शहर कोतवाल बड़ा या सिटी मजिस्ट्रेट साहब? कोतवाल ने मजिस्ट्रेट के आदेश की खुले आम उड़ाईं धज्जियां !”

“शहर कोतवाल की शह पर अवैध निर्माण: आदेश के बावजूद ढलती छत, पैसा फेंको, काम शुरू करो!”

 

मुख्य सवाल:

क्या पुलिस विभाग के भ्रष्टाचार पर कोई सख्त कदम उठाए जाएंगे?

क्या सिटी मजिस्ट्रेट का आदेश महज एक कागजी औपचारिकता थी?

क्या अवैध निर्माणों को रोकने के लिए कोई ठोस कदम उठाए जाएंगे या फिर यह ‘चलता है’ की मानसिकता जारी रहेगी?

यह मामला मीरजापुर के प्रशासनिक तंत्र की हकीकत बयान करता है और साथ ही एक बड़ा सवाल खड़ा करता है—जब कानून के पहरेदार ही नियमों की धज्जियां उड़ाने लगें, तो कौन जिम्मेदार होगा?

 

“शहर कोतवाल बड़ा या सिटी मजिस्ट्रेट साहब? कोतवाल ने मजिस्ट्रेट के आदेश की धज्जियां उड़ाईं!”

मीरजापुर: शहर कोतवाली क्षेत्र में अवैध निर्माण को लेकर सिटी मजिस्ट्रेट का सख्त आदेश आया था, लेकिन शहर कोतवाल ने इस आदेश की धज्जियां उड़ाते हुए निर्माण कार्य को अनदेखा कर दिया। ऐसा लग रहा है कि शहर कोतवाल का कद सिटी मजिस्ट्रेट से भी बड़ा हो गया है, क्योंकि सिटी मजिस्ट्रेट के निर्देश के बावजूद अवैध निर्माण पूरी तेजी से जारी है।कहावत है, “ऊपर कुंडली, नीचे पाताल,” और मीरजापुर की इस घटना में ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है। सिटी मजिस्ट्रेट ने स्पष्ट रूप से शहर कोतवाल बालमुकुंद मिश्रा को 21 सितंबर को आदेश दिया था कि बदली घाट पर हो रहे अवैध निर्माण को तुरंत रोका जाए, लेकिन अब सवाल उठता है कि आखिर किसके आदेशों पर ये निर्माण बिना रुकावट जारी रहा? क्या शहर कोतवाल ने जानबूझकर आदेश को अनदेखा किया, या फिर उनकी शह पर यह काम हो रहा था?

आइए बताते चलें कि क्या माजरा है।—

शहर कोतवाली के बाबा घाट पर अवैध निर्माण का खेल सरेआम जारी है, और इसमें सिटी मजिस्ट्रेट के स्पष्ट आदेश भी धूल फांक रहे हैं। शिवशंकर यादव, जिनका पुलिस विभाग से कनेक्शन है, ने गंगा नदी के तट से 200 मीटर के दायरे में 22 X 10 वर्ग फिट का अवैध निर्माण किया। सिटी मजिस्ट्रेट ने 21 सितंबर को आदेश जारी किया था कि इस निर्माण को तुरंत रोका जाए, लेकिन शहर कोतवाल बालमुकुंद मिश्रा की शह पर निर्माण बिना रुके जारी रहा और छत की ढलाई तक हो गई!

वह कहते हैं ना , “जहां पैसा बोलता है, वहां कानून बिकता है और सभी लोग मौन हो जाता है,” ऐसा ही इस मामले में यह पूरी तरह से सच साबित हो रहा है। प्राधिकरण के अधिकारियों ने अपना काम कर दिया, लेकिन कोतवाली की ओर से आंखें मूंद ली गईं। स्थानीय सूत्रों का कहना है, “शहर कोतवाली में पैसा फेंको, और अवैध काम शुरू करो।” यह न केवल अधिकारियों की साख पर सवाल उठाता है, बल्कि पूरे प्रशासनिक तंत्र को कठघरे में खड़ा करता है।

सिटी मजिस्ट्रेट का आदेश सीधे तौर पर शहर कोतवाल को था कि अवैध निर्माण को रोका जाए। लेकिन जब मौके पर जाकर देखा गया, तो छत की ढलाई हो चुकी थी। यह देखकर लगता है कि “हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और,” जैसी स्थिति बन चुकी है। एक तरफ सरकार अवैध निर्माणों के खिलाफ सख्ती की बात करती है, वहीं दूसरी तरफ स्थानीय अधिकारी पैसा लेकर इन कानूनों का मजाक उड़ाते हैं।

इस अवैध निर्माण का मामला अब सवाल खड़ा कर रहा है: क्या वाकई प्राधिकरण के आदेश केवल कागजी कार्रवाई बनकर रह जाएंगे? या फिर शहर कोतवाली में जारी इस भ्रष्ट तंत्र पर कोई ठोस कार्रवाई होगी?

“कानून बंधक है, और न्याय के पहिये पे रिश्वत की ग्रीस चलाती है,”

यह मामला साफ तौर पर दिखाता है कि कैसे आदेशों की अवहेलना हो रही है। अब देखना यह है कि क्या सिटी मजिस्ट्रेट की अवमानना करने वाले इस प्रकरण में कोई सख्त कार्रवाई होती है, या फिर यहां भी “रात गई, बात गई” वाली स्थिति होगी।

अवैध निर्माण पर लचर प्रशासन की कहानी मीरजापुर के लोगों के लिए नई नहीं है, लेकिन अब सवाल यह है कि आखिर कब तक अवैध कामों पर प्रशासन आंखें मूंदे रहेगा और कब तक कानून का मजाक उड़ाया जाएगा?

इस प्रकरण ने साबित कर दिया है कि “जब कानून के रखवाले ही कानून तोड़ने वालों के साथी बन जाएं, तो आम आदमी की उम्मीद कहां बचती है?” अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या सिटी मजिस्ट्रेट की आंखों में धूल झोंकने वाले इस खेल पर कोई सख्त कार्रवाई होती है या फिर मामला यहीं ठंडा हो जाएगा। जनता तो यही देख रही है कि “कानून से ऊपर पैसा और पद” चल रहा है।

news portal development company in india
marketmystique
Recent Posts