अहमसवाल क्या छिपा है राज—: पुलिस की परवरिश/दो जांबाज पत्रकार/ पुलिस की काली करतूत?/आरोपी करखास को क्यों बक्सा गय

स्वतंत्र पत्रकार चंदन दुबे

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!!उड़ता विंध्याचल: मिर्जापुर के काले कारोबार का पर्दाफाश, लेकिन कारखास की परछाई में दबी पुलिस की कार्रवाई!!

मिर्जापुर और विंध्याचल में मादक पदार्थों का गोरखधंधा का खेल अब किसी से छिपा नहीं है। **भारत जनता न्यूज़** द्वारा विंध्याचल के एक पत्रकार सूरज उपाध्याय और मिर्जापुर के रेलवे स्टेशन मार्ग पर रहने वाले रवींद्र जायसवाल के द्वारा सूरज के द्वारा किए गए गांजा बिक्री खबर का स्टिंग ऑपरेशन क खुलासा को प्रमुखता से ट्विटर पर ट्वीट किया और जिला प्रशासन के कार्यशैली पर सवाल खड़ा कर दिया। इस खुलासे ने जिले की कानून व्यवस्था की पोल खोल दी। दो निडर पत्रकारों ने अपनी जान की परवाह किए बिना इस धंधे का भंडाफोड़ किया, और आखिरकार पुलिस ने मादक पदार्थ बेचने वाले एक आरोपी को गिरफ्तार किया। विंध्याचल पुलिस ने व्हाट्सएप पर पत्रकार को जानकारी दी, लेकिन असल सवाल यहां अभी भी अनसुलझा है: *छोटेलाल कारखास का क्या हुआ?* जिनकी कर परस्ती में गांजा माफिया मिर्जापुर के विंध्याचल क्षेत्र में नशे के खेत का लहराता फसल सीच रहा है। उन पर कब गिरेगी गाज कब चलेगा बाबा का बुलडोजर?? इसी के साथ खबरों की महत्वपूर्ण ता पर पैनी सवाल का जवाब नहीं दे पा रही प्रशासन। आखिर अंगूर खट्टे क्यों लग रहे हैं अब?? जब अपने गिरेबान की गंदगी साफ करने की बात आई।
**मिर्जापुर में मादक पदार्थों की बिक्री का घोटाला:**

भारत जनता न्यूज़ की रिपोर्ट ने मिर्जापुर के धार्मिक स्थल विंध्याचल में चल रहे अवैध मादक पदार्थों के व्यापार के खबर को बेबाकी से यूपी सरकार के सामने डिजिटल प्लेटफार्म के माध्यम से पर्दाफाश किया, जिसके बाद पुलिस ने एक आरोपी को गिरफ्तार किया। लेकिन यह गिरफ्तारी केवल एक छोटा सा हिस्सा है। असली सवाल तो यह है कि इस व्यापार के मुख्य सूत्रधार, पुलिस कांस्टेबल छोटेलाल कारखास पर क्यों कार्रवाई नहीं की गई?
छोटेलाल कारखास, जिस पर आरोप है कि उसने अपनी पुलिस वर्दी का दुरुपयोग करते हुए गांजे की बिक्री में संलिप्तता निभाई, जो स्पष्ट वायरल वीडियो में दिख रहा है जिसको दो पत्रकारों ने बेबाकी से ट्विटर पर ट्वीट करके प्रश्न चिन्ह खड़ा किया है। जहां अहम सवाल है की अभी भी पुलिस के ब्रह्म वरदान के छत्रछाया में है, प्रशासनिक कार्यवाही क्यों नहीं हो रहा। सवाल उठता है कि जब यह बात जगजाहिर हो चुकी है कि किसके संरक्षण में यह अवैध व्यापार फल-फूल रहा था, तो उस पर कठोर कार्रवाई क्यों नहीं की गई? क्या पुलिस अपनी गिरेबान में झांकने से डर रही है?

**योगी सरकार की तारीफ और भ्रष्ट पुलिस की करतूतें**
योगी सरकार के कुशल नेतृत्व में उत्तर प्रदेश ने अपराध पर नकेल कसने की कई पहल की कोशिश की है,जिनकी सराहना की जानी चाहिए। लेकिन, सवाल यह है कि जब पुलिस विभाग के भीतर ही भ्रष्टाचार का दीमक घुन बनकर खड़ा हो, तो नशामुक्ति और अपराध नियंत्रण के ये प्रयास कितने सफल होंगे? सरकार की पहल की सच्चाई पर तब प्रश्नचिह्न लग जाता है। जब छोटेलाल जैसे कास्टेबल कारखास, जो गयपुरा चौकी में तैनात है, मादक पदार्थों के कारोबार का महत्वपूर्ण हिस्सा है। सवाल यह है कि इस सच्चाई के उजागर होने के बावजूद पुलिस ने उसे बचाने की कोशिश क्यों की? क्या पुलिस विभाग की छवि को बचाने के लिए एक दोषी अधिकारी को बख्शा गया? पुलिस ने गांजा बेचने वाले को पकड़ लिया, पर जिस पुलिस कारखास ‘छोटेलाल’ के संरक्षण में यह अवैध धंधा फल-फूल रहा था, उसे बचाने की कोशिशें क्यों हो रही हैं? यह भी वहा जहां यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार में आस्था की नगरी में उन्हीं के ड्रीम प्रोजेक्ट तैयार हो चुका है लगभग लगभग।
*संकल्प तोड़ने की कोशिश या नया संकल्प*
बीजेपी सरकार जहां उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश और अपराध मुक्त नशा मुक्ति बनाने के लिए संकल्पित और अग्रेषित है तो, वही एक ऐसी तस्वीर धार्मिक नगरी मिर्जापुर के विंध्याचल को पुलिसिया प्रशासनिक क्षेत्र से सामने है जिसमें आप देख सुन सकते हैं की, उस फिल्म में क्या कहानी बयां हो रही है, नशामुक्त बनाने की जगह नशा युक्त बनाने के तस्वीर का पूरा फिल्म सामने है , लेकिन जब नशे के इस अवैध धंधे के पीछे पुलिस के ही कर्मचारी हों, तब इस संकल्प की धज्जियां उड़ती दिखाई देती हैं। सरकार की मंशा सराहनीय है, लेकिन भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हैं कि **”सांप मरा नहीं, लकीर पीटते रह गए”।**
छोटेलाल जैसे कारखास कांस्टेबल पर अब तक कोई सख्त कार्रवाई न करना, सवाल उठाता है कि क्या मिर्जापुर की पुलिस खुद को इस मामले से बचाने की कोशिश कर रही है? आखिर क्यों ऐसे भ्रष्ट कर्मचारियों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई नहीं हो रही है, जबकि दो जांबाज पत्रकारों ने अपनी बहादुरी से इस काले कारोबार का पर्दाफाश कर दिया?

#### **जिले के आला अफसरों की चुप्पी और पत्रकारों के योगदान का अपमान**
जिले के पुलिस अधिकारियों और आला कमान ने अभी तक इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया है। पत्रकारों द्वारा नशे के अवैध कारोबार के इस घिनौने चेहरे को उजागर करना समाज के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था, लेकिन उनकी सराहना और सम्मानित करने के बजाय, पुलिस प्रशासन मौन साधे हुए है।

कहते हैं, “जो दिखता है, वो बिकता है,” लेकिन यहां जो दिखा, वह बिकने से ज्यादा **”पुलिस की वर्दी में छिपी बदनामी”** है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या इन भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए ही पुलिस चुप है? क्यों जिले के आला अधिकारियों ने इन निडर पत्रकारों को सम्मानित करने का कोई प्रयास नहीं किया, जबकि उनके साहसिक कदमों से समाज को सच्चाई का आईना दिखाया गया?

**नशामुक्त मिर्जापुर: हकीकत या सिर्फ एक सपना?**
नशामुक्त मिर्जापुर और विंध्याचल की दिशा में पुलिस का रवैया निराशाजनक है। जब पुलिस के अंदर बैठे गद्दार खुद इस अवैध धंधे का हिस्सा बन जाएं, तो योगी सरकार का नशामुक्ति अभियान सिर्फ एक दिखावा बनकर रह जाता है। “नया दिन, नई कहानी,” लेकिन इस कहानी का अंत तब तक सुखद नहीं होगा जब तक छोटे लाल जैसे कारखासों पर सख्त कार्रवाई नहीं होती और उनके संरक्षण में फल-फूल रहे इस व्यापार को पूरी तरह खत्म नहीं किया जाता।
**अंतिम सवाल: क्या पुलिस अपना गिरेबान बचा रही है?**
कही ऐसा तो नहीं की आने वाला समय उड़ता विंध्याचल: ‘उड़ता पंजाब’ से भी आगे ना निकल जाए मादक पदार्थों के व्यापार का गढ़ बन चुका है। पहले भी कई खबरें इस पर प्रकाशित हो चुकी हैं, पर अब वीडियो साक्ष्यों के आधार पर यह साफ हो गया है कि नशे के सौदागर पुलिस की सरपरस्ती में ही अपने धंधे को चला रहे हैं। जनता यह जानना चाहती है कि जब गंजा बेचने वाला गिरफ्तार हो सकता है, तो छोटेलाल जैसे भ्रष्ट पुलिसकर्मियों पर अभी तक कार्रवाई क्यों नहीं की गई? क्या पुलिस अपनी ही काली करतूतों को छिपाने की कोशिश में लगी है? या फिर यह मामला भी उन तमाम मामलों की तरह फाइलों में दबा रहेगा? और आखिर कब उन पत्रकारों को सम्मानित किया जाएगा, जिन्होंने अपनी जान की बाजी लगाकर सच को उजागर किया? पुलिस प्रशासन को यह सोचना होगा कि वह जनता की सुरक्षा के लिए है, न कि मादक पदार्थों के कारोबारियों की परवरिश के लिए।

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